Bhojpuri Tadka : दीये अउर बाती के दुःख को कोई नहीं समझता – अश्विनी रॉय ’सहर’

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दीये अउर बाती के दुःख  (दीया और बाती का दुःख)

केहू ना बूझत भाई रे  (कोई नहीं समझता भाई)

अंधेरा चाहे कतहूं (अंधेरा चाहे कितना भी हो)

उ रौशनी फैलाई रे। (वह प्रकाश फैलाता है)

तेल में डुबाई बाती (तेल में डूबी हुई बाती)

आग दिखाई रे (आग दिखा रही है)

दीये में त जलके सब (दीये में तो सब कुछ जलता है)

ख़ाक भईल भाई रे! (परन्तु अंत में सिर्फ खाक बचती है)

–अश्विनी रॉय ’सहर’

एक ऐसा इंसान जो हर किसी की मदद करता है परन्तु उसे ही अंत में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वह अपने व्यक्तित्व से हर तरफ खुशियाँ फैलता है परन्तु खुद अकेला रह जाता है।
महान है ऐसे लोग जो दुसरो की मदद करते है निस्वार्थ भाव से और दुसरो की ज़िंदगी में खुशियाँ फैलाते है।

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