Mahashivratri Kab Hai, पूजा समय ,निबंध, कहानी, महत्व | Shubh Muhurat Vrat Katha, Puja Vidhi in Hindi

मासिक शिवरात्रि एवं Mahashivratri Kab Hai, पूजा का शुभ समय, पूजा सामग्री, पूजा विधि एवम कथा, महत्व, निबंध, कहानी (Masik Shivratri and Mahashivratri Vrat 2023 Date, Pooja Time, Importance, Story, Pooja Vidhi in Hindi) )

शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है

महा-शिवरात्रि भगवान शिव के भक्तों के लिए साल का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। कृष्ण पक्ष मास का 14वां दिन शिव को समर्पित होता है और इसे बेहद खास दिन माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि वह दिन है जब शिव और उनकी देवी शक्ति का मिलन होता है। शिवपुराण के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। हिंदू धर्म के अनुसार ब्रह्मांड में तीन मुख्य देवता हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ये सभी त्रिदेव कहलाते हैं। भगवान भोलेनाथ (जिन्हें महादेव भी कहा जाता है) इन्हीं देवताओं में से एक हैं। माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी। शिवरात्रि का वर्णन गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, पद्मपुराण और अग्निपुराण में पाया जा सकता है। कहा जाता है कि शिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति बिल्वपत्रों से भगवान शिव की पूजा करता है और रात को जागकर भगवान के मंत्रों का जाप करता है, भगवान शिव उसे आनंद और मोक्ष प्रदान करते हैं। आइए जानें महाशिवरात्रि की तिथि, इस महत्वपूर्ण पर्व से जुड़े शुभ योग और पूजा विधि के बारे में।

महाशिवरात्रि शुभ समय (Maha Shivaratri Shubh Muhurat)

हर साल एक महाशिवरात्रि और ग्यारह शिवरात्रियां पड़ती हैं, इस तरह से पूरे वर्ष की बारह शिवरात्रि मानी गई है।मासिक शिवरात्रि हर माह में एक बार आती है, उस दिन भगवान शिव जी के विशेष पूजन-अर्चन करके यह दिन मनाया जाता है। मासिक शिवरात्रि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है। इसके अलावा हर महीने में दो बार त्रयोदशी तिथि को यानी पहला कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में प्रदोष व्रत किया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार किसी भी माह की त्रयोदशी तिथि में सायंकाल को प्रदोष काल कहा जाता है। यह प्रदोष व्रत को मंगलकारी माना गया है, यह शिव कृपा प्राप्ति का दिन भी माना जाता है। मान्यतानुसार यह व्रत करने से सौ गायों का दान करने का फल मिलता है। गुरु प्रदोष व्रत जहां शत्रुओं का नाश करने वाला है वहीं समस्त कष्ट और पापों को भी नष्ट करता है।

मासिकशिवरात्रि  2023 में कब शुभ मुहूर्त है (Masik Shivratri 2023 Dates)

तारीख महीनादिनशिवरात्रि
20जनवरीशुक्रवारमासिक शिवरात्रि
18फरवरीशनिवारमासिक शिवरात्रि
20मार्चसोमवारमासिक शिवरात्रि
18अप्रैलमंगलवारमहा शिवरात्रि
17मईबुधवारमासिक शिवरात्रि
16जूनशुक्रवारमासिक शिवरात्रि
15जुलाईशनिवारमासिक शिवरात्रि
14अगस्तसोमवारमासिक शिवरात्रि
13सितंबरबुधवारमासिक शिवरात्रि
12अक्टूबरगुरुवारमासिक शिवरात्रि
11नवंबरशनिवारमासिक शिवरात्रि
11दिसंबरसोमवारमासिक शिवरात्रि

महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है, 2023 में कब है (Mahashivratri kab hai)

पूजा के शुभ मुहूर्त : हिंदू पंचांग के अनुसार 18 फरवरी 2023,  शनिवार के दिन महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाएगा। 

निशिता काल पूजा : 19 फरवरी को तड़के 12:16 से 1:06 तक रहेगा।  निशिता काल पूजा की जो समय अवधि 50 मिनट रहेगी।
महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त:19 फरवरी, रविवार  प्रातः 06:57 मिनट से दोपहर 03: 33 मिनट तक
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय: सायं 06: 30 मिनट से रात्रि 09:35 मिनट तक
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय:  रात्रि 09:35 मिनट से तड़के 12:39 मिनट तक
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय: 19 फरवरी, रविवार, तड़के 12:39 मिनट से 03:43 मिनट तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा का समय: 19 फरवरी, रविवार, प्रातः 3:43 मिनट से 06:47 मिनट तक

शिवरात्रि / महाशिवरात्रि व्रत एवम पूजन विधि (Shivratri / Maha Shivratri Vrat Puja Vidhi)

(1) Puja Samgri पूजन सामग्री

एक जल से भरा हुआ कलश, बेल पत्र, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद पुष्प व माला, आंकड़े का फूल, सफेद मिठाई, सफेद चंदन, धूप, दीप, घी, सफेद वस्त्र, आम की लकड़ी, हवन सामग्री, एक थाली (आरती के लिए)।

(2) महाशिवरात्रि पूजा विधि

  • इस दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर अनशन व्रत रखना चाहिए।
  • महाशिवरात्रि के दिन गेंहू, चावल, बेसन, मैदा आदि से बनी चीजों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए
  • यदि आप महाशिवरात्रि का व्रत रख रहें हैं तो आपको दिन में नहीं सोना चाहिए।
  • उपवास में अन्न ग्रहण नही किया जाता. दोनों वक्त फलाहार किया जाता हैं.
  • मान्यता है कि जो भक्त इस रात में जागरण कर के शिव और उन की शक्ति माता पार्वती की आराधना और भजन वगैरह करते हैं, उन भक्तों पर शिव और मां पार्वती की विशेष कृपा होती है. उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन के तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं. 
  • इसके बाद शिव मंदिर जाएं या घर के मंदिर में ही शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
  • पानी डालने के लिए सबसे पहले तांबे के लोटे में गंगा जल लें। अगर गंगा जल नहीं है, तो सादे पानी में गंगा जल की कुछ बूंदें मिलाएं।
  • अब कमल में चावल और सफेद चंदन मिलाएं और “ऊं नम: शिवाय” कहते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
  • जल चढ़ाने के बाद चावल, बेल-पत्र, सुगंधित फूल, धतूरा, भांग, बेर, अमर मंजरी, जौ के दाने, तुलसी की दाल, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, मौली, जनेऊ और पंच मिष्ठान एक-एक करके।
  • शमी के पत्ते अर्पित करने के बाद शिवजी को धूप और दीप दिखाएं।
  • फिर कर्पूर से आरती कर प्रसाद वितरित करें।

शिवरात्रि कथा

प्राचीन काल में एक शिकारी जानवरों का शिकार करके अपने कुटुम्ब का पालन पोषण करता था। एक रोज वह जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिन भर भागदौड़ करने पर भी उसे कोई शिकार प्राप्त न हुआ। वह भूख-प्यास से व्याकुल होने लगा। शिकार की बाट निहारता-निहारता वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर अपना पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को इस बात का ज्ञात न था।

पड़ाव बनाते-बनाते उसने जो टहनियां तोड़ी, वे संयोग से शिवलिंग पर जा गिरी। शिकार की राह देखता-देखता वह बिल्व पेड़ से पत्ते तोड़-तोड़ कर शिवलिंग पर अर्पित करता गया। दिन भर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। इस तरह वह अनजाने में किए गए पुण्य का भागी बन गया।

रात्रि का एक पहर व्यतीत होने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने आई। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘शिकारी मुझे मत मारो मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास वापिस आ जाऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ 

शिकारी को हिरणी सच्ची लगी उसने तुरंत प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई। कुछ समय उपरांत एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी बहुत खुश हुआ की अब तो शिकार मिल गया। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। 

मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे  शिकारी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार अपने शिकार को उसने स्वयं खो दिया, उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे शिकारी ! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मार।’

शिकारी हंसा और बोला, ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’

उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी अपने बच्चों की चिंता है इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे शिकारी ! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।’

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य  करेगा।

 शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,‘ हे शिकारी  भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगा।’

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’

उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।

देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।

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FAQ

प्रश्न : महाशिवरात्रि 2023 कब है ?

उत्तर : 18 फरवरी

प्रश्न : महाशिवरात्रि कौन से माह में आती है ?

उत्तर : फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को

प्रश्न : महाशिवरात्रि का त्यौहार क्यों मनाया जाता है ?

उत्तर : कहा जाता है इस दिन माता पार्वती एवं भगवान शिव जी का विवाह हुआ था.

प्रश्न : क्या महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखा जाता है ?

उत्तर : जी हां, बिलकुल

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